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Girijeshthepoet

My self                    
I am an Indian citizen lives in a village of district Sultanpur of Uttar Pradesh a most populated state of India.
 My primary education was taken place in my own village Rupaipur primary school there after I got secondary education from my nearby village Harpur.I took high school education from nearby village Kalan in S.V.N.Inter college Kalan Sultanpur. After that I went to Allahabad to get intermediate and higher education from where i got intermediate from Colonel ganj inter college Allahabad which is known as CIC also. I got graduation (B.A.) from  University of Allahabad and post graduation in Hindi literature from there too. During graduation I got a part time diploma course in Russian language too. Thereafter i got Llb from a college of Allahabad University named as CMP degree college of law. After law graduation I took a professional teaching course B.ed from a college of Purvanchal University named Handia P.G. college Handia Allahabad. During this course I qualified PCS 2000 batch and hold a small post Assistant Consolidation Officer and in the year 2002 I joined it in the district Azamgarh. In 2009 I was transferred to district Etah of western UP. From there I was transferred to district Gonda just neighboring district of Ayodhya the birth place of lord Ram in 2012. From Gonda I was transferred to district Balrampur in 2019. and in the year 2021 I was transferred to district Basti from Balrampur,  where I am working now at the same post mentioned above.
 I have some literary interest in my childhood and which make me poet as time passed during intermediate I wrote my first poem which is given bellow:-
 आदमी परेशान है
नेता कुत्ता और नए कवी से
नेता परेशान है कुर्सी के लिए
कुत्ता परेशान है रोटी के लिए
और नया कवि परेशान है
अपनी झूठी छवि के लिये
         गिरिजेश "गिरि"
It was my first effort to write a poem 
In which i want to say that human beings are puzzled by three means leaders, dogs and new poets first of them is puzzled for seat second one for bread and third is for his fake fame.
I think all of u have understood that whatever i want to say.
Thanking You  to bear me.
Yours
Girijesh"giri"
८ नवम्बर १९७० को उत्तर प्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जनपद की कादीपुर तहसील में जौनपुर, आजमगढ़ एवं अम्बेडकर नगर की सीमा पर स्थित ग्राम रूपईपुर में कछवाहा राजपूतों के एक संयुक्त परिवार में जन्म हुआ. बचपन में ही लगभग १० वर्ष की अवस्था में पिता श्री गुनराज सिंह का देहावसान हो जाने के कारण माता श्रीमती गुलाबी देवी द्वारा विषम आर्थिक परिस्थितियों में संयुक्त परिवार में पालन-पोषण हुआ.  परिवार में मां के अतरिक्त दो भाई एवं दो बहनें हैं और सबसे छोटा मैं हूँ. प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्राम के ही प्राथमिक विद्यालय में एवं कक्षा १० तक की  शिक्षा आस-पास के  विद्यालयों में  हुई . हाईस्कूल गणित एवं विज्ञान के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के उपरांत इंटरमीडिएट  एवं उच्चतर शिक्षा हेतु इलाहाबाद चले गए जहाँ पर कर्नलगंज इंटर कालेज से १२ वीं की परीक्षा  द्वितीय श्रेणी में गणित, भौतिकी एवं रसायन के साथ उत्तीर्ण की. तदुपरान्त इलाहबाद विश्वविद्यालय से  कला वर्ग में स्नातक एवं स्नातकोत्तर  (हिंदी साहित्य) एवं विधि स्नातक की  उपाधियों के साथ-साथ रुसी भाषा में द्विवर्षीय डिप्लोमा भी धारण किया. जीविकोपार्जन हेतु रोजगार की प्रत्याशा में पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महाविद्यालय हंडिया पी.जी. कालेज हंडिया से बी.एड.  का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया. इसी दौरान उत्तर प्रदेश लोक सेवा योग द्वारा आयोजित सम्मिलित राज्यप्रवर सेवा परीक्षा २००० में सहायक चकबंदी अधिकारी के पद पर चयन हुआ और इसी पद पर आजमगढ़, एटा, गोंडा, बलरामपुर में कार्य करने के उपरांत वर्तमान में जनपद बस्ती में तैनात हूँ.

 कविता करने में रूचि स्नातक की शिक्षा के दौरान पैदा हुई जो जीवन के विभिन्न पहलुओं से गुजरती हुई हुई सतत जारी है. श्रीमद्भग्वद्गीतांजलि भगवान योगेश्वर की असीम अनुकम्पा है जो मैंने अपनी शिक्षा के अंतिम पड़ाव में लिखी थी किन्तु अंतिम अध्याय सरकारी सेवा में आने के पश्चात लिखा. यहाँ यह स्पष्ट कर  देना चाहता हूँ कि यह रचना श्रीमद्भागवद्गीता पर आधारित सरल हिंदी कविता में मौलिक रूप से प्रस्तुत करने का एक क्षुद्र प्रयास मात्र है न कि गीता का अनुवाद .  यह गीता का वह भावानुवाद है जो गीता के समस्त अवयवों को धारित करता तो है पर रचनाकार का व्यक्तित्व भी उसमें समाहित है जिससे पाठक गण गीता का ज्ञान प्राप्त कर स्वयं को अभिभूत करते हुए रचनाकार को भी कृतार्थ कर सकते हैं 

                                                            
  गिरिजेश''गिरि''
                           
                                    ''श्रीमद्भग्वद्गीतांजलि''
                                         प्राक्कथन
भगवद्गीता संसार की प्राचीनतम धार्मिक कृतियों में से एक है जो मानव मात्र के लिए सीधे ईश्वरीय सन्देश है यह भगवान योगेश्वर और उनके सबसे प्रिय भक्त के बीच में स्थापित अनुपम संवाद है जो कि मूलरूप में देववाणी संस्कृत में भगवन श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया वह उपदेश है जब अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में मोह व्याप्त हो गया था . गीता का सन्देश हमारी परम्पराओं, प्राचीन कलाओं कहावतों आदि में छिपा हुआ है जैसे कि
                       ‘’ काम किये जा फल की इच्छा मत कर ‘’.
यह किसी व्यक्ति विशेष, जाति, वर्ग, पन्थ, देश-काल या किसी रूढ़िग्रस्त संप्रदाय का ग्रन्थ नहीं है, बल्कि यह सार्वलौकिक, सार्वकालिक धर्मग्रन्थ है यह स्वयं में धर्म शास्त्र ही नहीं, बल्कि अन्य  धर्म ग्रंथों में निहित सत्य का मानदंड भी है . गीता वह कसौटी है जिस पर प्रत्येक धर्मग्रन्थ में अनुस्यूत सत्य अनावृत हो उठता है, और इसका प्रत्येक श्लोक आपसे युद्ध आराधना की मांग करता है . यह उस अमरत्व को उपलब्ध कराता है जिसके पीछे जन्म मृत्यु का बंधन नहीं रह जाता .
महाभारत महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित एक ऐसा महाकाव्य है जिसमे अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना किये जाने का  वर्णन कौरवों और पांडवों के मध्य हुए संघर्ष के माध्यम से व्यक्त किया गया है जिसमे योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्वपूर्ण योगदान है जिन्होंने धर्म की स्थापना हेतु युद्ध करने के लिए अर्जुन को उपदेश दिया है जो कि मानव मात्र की आने वाली समस्त पीढ़ियों के लिए मार्ग दर्शन भी है . यह उपदेश जो कि भगवद्गीता के रूप में जाना जाता है  वस्तुतः महाभारत महाकाव्य का ही अंश है जिसे संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाया था . यह सनातन धर्म में युगों-युगों तक मानव जीवन को कठिनाइयों से जूझने एवं धर्म का साथ देने की शिक्षा देता है .
वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता स्वयं अपने आप में एक जीवन दर्शन है जो कि किसी भी धर्म, जाति या स्थान से परे है यह मानव मात्र को धर्म की तरफ जाने की प्रेरणा है, यह वह दैवीय सन्देश है जो ज्ञान, आस्था, समर्पण, अनासक्ति, निष्काम कर्म और योग आदि पर केन्द्रित है जो कि मानव के अहं को नष्ट कर उसे विषयों से दूर ले जाता है .  गीता मनुष्य को सांकेतिक रूप से  उसके अंतर्मन में चल रहे संघर्ष से लड़ने की शक्ति देता है . जहाँ तक मेरी समझ में आता है कि गीता में वर्णित महाभारत का युद्ध शायद ही धरती पर लड़ा गया कोई युद्ध रहा  होगा, अपितु यह मानव शरीर के अंदर व्याप्त कुप्रवृत्तियों एवं सद्प्रवृत्तियों के मध्य लड़ा जाने वाला युद्ध है . स्वयं भगवन श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है
                           ‘’ इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रं इति अभिधीयते ‘’
अर्थात हे कौन्तेय यह शरीर ही वह युद्ध क्षेत्र है जिसे क्षेत्रज्ञ यानी ज्ञानी पुरुष ही जानता है .
अर्जुन को जब युद्ध क्षेत्र में अपने ही सगे-सम्बन्धियों से युद्ध न  करने का मोह हो जाता है तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उनके इस मोह को दूर करने के लिए गीता का उपदेश देते हैं और उन्हें अपने उस विकराल रूप का दर्शन कराते हैं तथा यह बताते हैं कि प्राणी जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि में ही व्यक्त होता है जन्म से पहले और मरने के पश्चात् वह अव्यक्त ही रहता है -
                                      थे जात पूर्व प्राणी अव्यक्त
                                     मरणोत्तर भी होंगे न व्यक्त
                                     यह व्यक्त मध्य है मरण-जात
                                     फिर क्यों करते हो शोक पार्थ
जैसे मनुष्य जीर्ण-शीर्ण पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, ठीक वैसे यह जीवात्मा पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर को धारण करती है - 
छाँड़ि जीर्ण वस्त्रों को ज्यों नर
धारण करता नव शरीर नर
तजती त्यों जीवात्मा जीर्ण को
धारण करती नव शरीर को
अतः आत्मा न तो कभी मरती है और न पैदा होती है इसलिए इस शरीर का मोह त्याग कर धर्म की स्थापना के लिए युद्ध करो -
आत्मा अकाट्य एवं अदाह्य है
आप मरुत भी निश्प्रवाह्य है
नेति-नेति इसका है विशेषन
नित्याचल यह तो है सनातन
अचिंत्याव्य्क्त यह निर्विकार है
करना शोक तेरा बेकार है
यह निष्काम कर्म की शिक्षा देता है कि-
अधिकार तेरा कर्मो पर ही
फल की इच्छा हो कभी नहीं
आसक्ति न हो फल कर्मों से
औ प्रीति नहीं हो विकर्मों से
इस प्रकार यह बिना फल की इच्छा किये मानव को कर्म की तरफ प्रेरित करने वाला ज्ञान है जो कि जीवन संग्राम का साधन नहीं अपितु जीवन संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है.  गीता में वर्णित युद्ध धनुष- बाण, तलवार आदि से लड़ा जाने वाला सांसारिक युद्ध नहीं है और न तो इसमें शाश्वत विजय निहित है, अपितु यह सद असद प्रवृत्तियों का संघर्ष है जिनकी एक रूपात्मक  परंपरा देवासुर संग्राम, राम-रावन युद्ध है, गीता में यह धर्म क्षेत्र व कुरुक्षेत्र के रूप में व्यक्त होता है  जिसे सद्गुणों और दुर्गुणों का संघर्ष कहा जा सकता है .
यूँ तो गीता वह पुस्तक है जिस पर विश्व की सभी भाषाओँ में अनुवाद एवं टीकाएँ उपलब्ध हैं जो मानव मात्र को अधर्म का नाश कर धर्म की तरफ जाने की प्रेरणा देती हैं . गीता पर जितना भी लिखा जाये उतना कम ही है क्योंकि यह सम्पूर्ण वेदों का सार है . इसे जन-जन तक पहुँचाने एवं सरल एवं सुबोध भाषा में जिसे आम हिंदी भाषी कंठष्थ कर सके, हिंदी कविता में ‘’भग्वद्गीतांजलि’’ के रूप में लिखने का मेरा एक क्षुद्र मौलिक प्रयास है जो कि श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद न होकर उस पर आधारित उसका भावानुवाद है
आशा है की इससे हिंदी भाषी जन अपने जीवन के संघर्षों से  लड़ने की शक्ति प्राप्त करेंगे .यदि यह पुस्तक किसी को भी गीता का दर्शन समझाने में सफल होती है तो मैं अपने आप को कृतार्थ समझूंगा क्योंकि गीता के अंतिम अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि
                                        हे! पार्थ कहो नहिं किसी काल
गीतोपदेश का रहस्य जाल
मम भक्तों को गीतोपदेश
श्रद्धा जिनकी मुझमें विशेष
निःसंशय प्राप्त हूँ मैं उसको
यह मर्म बताता हूँ तुझको
उससे बढ़कर नहिं प्रिय कृत्यम
नहीं कोई है नहीं भवितव्यम
 उससे बढ़कर धरती पर तो
प्रिय नहीं कोई मुझको भी तो
जो पुरुष पढ़े संवादों को
मैं ज्ञान यज्ञ से पूजित उसको
श्रद्धा से सुने जो गीता शास्त्र
             शुभ लोकों का वह भी है पात्र
अर्थात इस गेय पद को जो पढ़ेगा या सुनेगा वह भगवन को प्रिय एवं शुभ लोकों का पात्र होगा .
अतः आप सब गीता के दर्शन को आत्मसात कर अपने जीवन को सफल बनायें यही मेरी कामना है
                                                                              गिरिजेश’’गिरि’’

मेरी दूसरी पुस्तक ''लॉकडाउन से अनलॉक तक'' की भूमिका (पुस्तक अभी प्रेस में है )

प्राक्कथन

इक्कीसवीं सदी का बीसवां साल अभी चालू भी नहीं हुआ था कि संपूर्ण मानव प्रजाति के जीवन में प्रकृति ने एक तूफ़ान की दस्तक दे दी और उसके आस-पास के वायुमंडल में एक विष सा घोल दिया , वह और कुछ नहीं था ,अपितु एक विषाणु ही था जिसे चिकित्सा विज्ञानियों ने कोरोना नाम दिया था कोरोनावायरस वायरस का एक समूह है जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में बीमारी का कारण बन सकता है। SARS-CoV के रूप में जाना जाने वाला गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (SARS) वायरस स्ट्रेन कोरोनावायरस का एक उदाहरण है। एसएआरएस 2002-2003 में तेजी से फैला। कोरोनोवायरस के नए स्ट्रेन को गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम कोरोनावायरस 2 (SARS-CoV-2) कहा जाता है। वायरस कोरोनोवायरस रोग 19 (COVID-19) का कारण बनता है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन की उत्पत्ति चमगादड़ या पैंगोलिन में हुई थी। मनुष्यों में पहला संचरण वुहान, चीन में हुआ था। तब से, वायरस ज्यादातर व्यक्ति-से-व्यक्ति के संपर्क के माध्यम से फैल गया है।

 नया कोरोनोवायरस दुनिया के कई हिस्सों में तेजी से फैल गया है। 11 मार्च, 2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने COVID-19 को महामारी घोषित किया। एक महामारी तब होती है जब एक बीमारी जो लोगों को बड़े क्षेत्रों में फैलने के लिए प्रतिरक्षा नहीं होती है। COVID-19 वाले लगभग 80% लोग विशेषज्ञ उपचार के बिना ठीक हो जाते हैं। ये लोग हल्के, फ्लू जैसे लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं। हालांकि, 6 में से 1 व्यक्ति गंभीर लक्षणों का अनुभव कर सकता है, जैसे कि सांस लेने में परेशानी

चीन के वूहान शहर से निकलने वाला यह वायरस पहले चीन को फिर उसके पडोसी मुल्कों में अपने पैर पसारा फिर धीरे-धीरे यह एशिया के अन्य देशों के साथ-साथ यूरोपियन देशों को संक्रमित किया . तत्पश्चात यह अमेरिकी, लातीनी अमेरिका , अफ्रीका या यूँ कहें कि दुनिया 90% देशों को अपना शिकार बना लिया . पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ा संकट आ पड़ा . हर देश में लॉकडाउन जैसी स्थिति आ गयी दुनिया के सभी देश पूरी तौर से या आंशिक रूप से बंद होने लगे . लोग अपने घरों में कैद होने के लिए बाध्य होने लगे . यहाँ तक कि मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात होने लगे. अस्पतालों में कोविड -19 के रोगियों के लिए बिस्तर भी उपलब्ध नहीं हो प् रहे थे . सरकारों के द्वारा विशेष कोविद-19 के अस्पताल बनाये गए अथवा अस्थायी अस्पताल घोषित किये गए . क्योंकि यह रोग संक्रमण से फैलता है इसलिए संक्रमण से बचने के लिए ही तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाने पड़े . क्वारंटाइन सेंटर खोलने पड़े जहाँ पर संदिग्ध संक्रमित को 14 दिन अवश्य बिताना पड़ता था ताकि यदि वह कोरोना संक्रमित हो दूसरे किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित न कर सके .

इसी कड़ी में हमारे देश में भी विदेश से लौटे यात्रियों के माध्यम से पहुंचा . सर्व प्रथम केरल राज्य में इसके लक्षण वाले रोगी पाए गए . धीरे-धीरे वहाँ से पूरे देश में फैलना शुरू हो गया . देश में संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए हमारे यशस्वी प्रधान मंत्री जी ने एक प्रयोग किया वह था जनता कर्फ्यू का जिसमे उनके द्वारा जनता से 23 मार्च को अपने घरों से बाहर नहीं निकलने की appeal  की और शाम 5 बजे अपनी अपनी बालकनी से front line वर्कर्स का ताली थाली बजा कर  हौसला अफजाई करने का आह्वान किया . जो पूर्ण रूप से सफल रहा , जिसे पूरी दुनिया देख कर दंग रह गयी और विश्व के कोने-कोने से प्रधान मंत्री जी को बधाई के सन्देश मिलने लगे, यहाँ तक कि कितने पश्चिमी देशों ने तो इस फोर्मुले को अपने यहाँ अप्लाई भी किया . जनता कर्फ्यू की अपार सफलता को देखते हुए और देश वासियों  की जान बचाने के लिए 25 मार्च 2020 से पूरे देश में अचानक 21 दिनों के लॉक डाउन की घोषणा कर दी गयी , जिससे जो जहाँ था वह वहीँ पर रूक गया कोई घर में तो कोई बाहर , कोई देश में तो कोई परदेश में . सारे यातायात के साधन रोक दिए गए . अति आवश्यक सेवाओं को छोड़ कर सब कुछ बंद हो गया . सड़कें वीरान नज़र आने लगी . दुकान, बाज़ार, ऑफिस, देवालय, मनोरंजन केंद्र , स्कूल ,कॉलेज सब कुछ बंद . खुले थे तो सिर्फ अस्पताल और काम कर रहे थे तो सिर्फ front line वर्कर्स . इसके अतिरिक्त सब घरों में कैद .एक अभूतपूर्व बंदी  जिसकी कल्पना कभी भी किसी ने नहीं की होगी .

कोविड-19 की इसी परिस्थिति से उपजी मानसिक अवस्था में मैंने अपनी इस पुस्तक ‘’लॉकडाउन से अनलॉक तक’’  को लिखने का एक क्षुद्र प्रयास किया है . जिसमें लॉकडाउन के विभिन्न चरणों से लेकर अनलॉक के विभिन्न चरणों के दौरान आर्थिक, राजनैतिक , सामाजिक, धार्मिक , प्राकृतिक आदि प्रभावों को उल्लिखित करने का प्रयास किया गया है कोविड-19 का प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं रहा इसने तो सामरिक, पारिवारिक, शैक्षणिक यहाँ तक कि वैयक्तिक स्तर पर भी अपना प्रभाव छोड़ा. कितने लोग काल के गाल में समा गए , कितने परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गए , या विखर गए . पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी , फिर भी हम हार नहीं माने और उसी का परिणाम है कि जिस देश में लोगों को मास्क भी उपलब्ध नहीं थे वही देश आज दुनिया को वैक्सीन की आपूर्ति कर रहा है . संकट कितना भी बड़ा हो एक न एक दिन उसका अंत होता ही है इस महामारी ने मानव को एक नए युग का संकेत दिया है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण ओजोन क्षिद्र का रिकवर करना , नदियों का जल निर्मल होना आदि यह दिखाता है कि प्रकृति के मामले में मानव का हस्तक्षेप प्रकृति को स्वीकार नहीं , प्रकृति की कृपा पर ही जीवन संभव है इसलिए प्रकृति पर निर्भरता अपरिहार्य है प्रकृति पर जीवन की निर्भरता को लेकर प्रस्तुत है मेरी कविता ‘’जीवन और प्रकृति ‘’ जिस पर इस विषम परिस्थिति का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है

 

 

जीवन और प्रकृति

वीरान सी जिंदगी में

शिकायतों का दौर

थम सा गया है

                                     एक अदृश्य विषाणु ,

जिसे सजीव कहूँ या निर्जीव ?

किन्तु

कोहराम सा मचा रखा है

चारों तरफ

एक शांत सी हलचल

जिससे हैं सब उद्वेलित

पर विवश हो गए हैं ,

खुद को कैद रखने को .

एकाएक

चिकित्सा तंत्र से

कोई आता है

और उठा लेता है

हममें से किसी एक को

फिर कुछ पता नहीं चलता

और एक दिन सूचना मिलती है कि

वे शिकार हो गए

किसी अदृश्य जीव के

मिलता कुछ नहीं

सिवा सूचना के

यहाँ तक कि

लाश भी नहीं मिलती है

आखिर

कब तक चलेगा

ये मौत का दौर

या मिलेगा कहीं ठौर ?

वैज्ञानिक भी लगा रहे हैं

अपनी एडी -चोटी  का जोर

किन्तु

सफलता कहाँ तक मिलती है ?

यह भी एक प्रश्न चिह्न ही है

होगी कोई रोक-थाम ?

या

प्रकृति अपना रौद्र रूप

दिखा कर ही मानेगी

अंततः

प्रकृति ही नियति है

जिसके आगे सब हैं मजबूर

फिर भी

कोशिश करना

अपना धर्म है

जो हम निभा रहे हैं

बाकी सब कुछ तो

है उसी के हाथ

जिसके अंग तो

हम सब भी हैं

और उससे पृथक

रहा भी तो नहीं जा सकता

गिरिजेश ‘’गिरि’’ 

 

 

 

आशा है महामारी के दौरान संस्मरणात्मक शैली में लिखी यह पुस्तक पाठक गण को अवश्य पसंद आएगी ,जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा पुस्तक की महत्ता और बढती ही जाएगी क्योंकि भविष्य में यह पुस्तक कोरोना काल के इतिहास का एक स्रोत भी हो सकती है .

     गिरिजेश’’गिरि’’

 


पुस्तक मिलने का पता :-



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30/35/36 गली नम्बर 9
विश्वास नगर - दिल्ली
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Price-150 Rs only
for more details you may contact on the numbers given bellow
08447260735, 09990561601


1 comment:

Unknown said...

We are urgently in need of Kidney donors with the sum of $500,000.00,Email: customercareunitplc@gmail.com

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