Thursday 6 August 2015

प्रेरणा (Insipiration) 1,2

एक 


कविते मेरी तू कर श्रृंगार
चाहिए नहीँ रस अलंकार
बनो प्रेरणा तुम मेरी
वर्णित कर दूँ मैँ क्षवि तेरी
भर दूँ ज्योति तुम्हारी इसमेँ
करूँ प्रकाशित जग को जिससे
अधरोँ की मुस्कान भरूँ मैँ
सुर सरिता की तान भरूँ मैँ
छेड़ूँ फिर मै वही राग
हो जिससे तुम बाग-बाग
पुलकित यौवन तेरा भास्वर
बन जाये मेरी कविता का स्वर
हो रहे प्रस्फुटित शब्द वहाँ
क्यूँ होता है अनुरणन यहाँ
बन रही नियति कुछ ऐसी ही
सर्जित कर दूँ तुम जैसी ही
जिसमेँ बस तुम ही तुम झलको
विस्मृत कर दूँ फिर मै खुद को

      गिरिजेश "गिरि"

Iinspiration

In this poem the poet wants to say that do poetry adorned thyself which doesn't need the figure of speech so he wants to be inspired by it by which he wants to describe its image in which he wants to fill the light of poetic glory which enlighten the world .the poetry will be filled by smiles and singing voice of rivers. Then he plays that tune by which she gets the tressure of pleasure the glory of her youth makes the voice of the poet as a poetry. The resonance of the words of her is heard by him.thats why such environment is created that poet wants to make such creation just like her.in which only she is admired and poet lost himself in it.
                              
                                    Girijesh"giri"

दो 

मैं 
धन्यवाद देना चाहता हूँ 
उनको 
जिन्होंने 
मेरी कविता को 
मरने नहीं दिया 
इतना दर्द भर दिया 
मेरे जिगर में 
कि
वह कविता के रूप में 
फूट पड़ा 
मैं नितांत 
अकेला होता गया 
और यह एकाकीपन ही 
बन गया मेरा उद्वेलन 
कितना त्याग है 
उनमें 
जो अपने प्यार को 
दबाये हुए जी रहे हैं 
सिर्फ इसलिए 
कि
कहीं मेरी कविता 
मर न जाये
मैंने शब्दों को 
साधन बना लिया 
और 
अपनी नीरवता 
इन शब्दों से उत्पन्न 
ध्वनियों से 
भंग करने का 
प्रयास करने लगा 
क्योंकि 
अब अभिव्यक्ति के रूप में 
मेरे पास हैं 
ये ध्वनि विहीन शब्द 
या आंसू 
जिसके दर्द को 
शायद कोई नहीं 
समझ सकता 
वे भी नहीं 
जो मेरे अपने हैं 

गिरिजेश''गिरि''

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