प्रीति(LOVE)
उठता जब भी मन मेँ
इक अजीब सा द्वंद
प्रस्फुटित स्वत: होता
ज्यों प्रथम कवि का छंद
कर रहा वंदना मैँ तेरी
जय माता जय हे सरस्वती
दो साहस इतना तुम मुझको
लिख दूँ निज की गाथा प्रीती
है याद मुझे वह दिन
बैठी पितु के संग तू
पलकोत्थान होते
जब सिमट गयी थी तू
फिर चला सिलसिला जो
वो रुका नहीँ अब तक
चलता ही रहेगा ये
होगा न मिलन जब तक
सम्भाषण नयनों से होता
शब्दों का कोई काम नहीँ
जब लूँ निहार तुझको
मिले मन को तब विश्राम वहीँ
धीरे-धीरे आयी
ग्रीषम प्रचंड की ऋतु
अवकाश बिताने को
तू गयी छोड़ गृह पितु
दिन चार बिताये मैँने
हों चार वरष जैसे
मैँ बाट जोहता ऐसे
दाता की अकिँचन जैसे
फिर आयी रात सुहावन
जब खड़ी पकड़ तू दामन
देखा मैने तुझको
तू भूल गयी खुद को
चल रहा सिलसिला गोपन
कितने बेबस थे हम
पुलकित होता यौवन
पर मिल सकते थे न हम
इक दिन मारग मेँ तू
खड़ी रही थी जब
खुद मेँ खोयी थी तू
गुजरा मैँ वहीँ से जब
विस्फारित नयनों से
देखा तुमने मुझको
प्रस्फुटित हुआ अधरों से
सम्बोधित कर तुझको
स्मित की इक रेखा
उभरी अधरों पर तब
मैँ नाच उठा मन मेँ
मिल गया मुझे ज्यों रब
मैँ लगा सोचने तब से
तू करती क्यों आकर्षित
न पा करके तुझको
क्यूँ हो जाता हूँ व्यथित
माँ के भालों की बल रेखा
तुमने इक दिन जब देखा
तू लगी सोचने तब
आखिर होगा क्या अब
पिता भी चिँतित तुझे दिखे
चेहरे से कुछ बुझे दिखे
माँ कहती कुछ जब भी उनसे
वे झल्लाकर तुझ पर बरसे
माँ ने इक दिन तुझे समझाया
पर रोक न सकी निज की माया
अवसर जब भी तूने पाया
दिखला ही दी अपनी छाया
मैँ खड़ा दूर निष्प्रभ देखा
पर रोक न सका विधि का लेखा
ऋतु थी वो रिम-झिम सावन की
दिखती थी मूरत पावन की
धुँधला प्रकाश था कमरे मेँ
तू रही सोचती कुछ मन मेँ
तब तक सिसकी फिर फफक पड़ी
माता थी तेरे पास खड़ी
मैँने सोचा कारन हूँ मैँ
फिर लगा कोसने खुद को मैँ
दिन चार अजनबी बने रहे
खुद ही खुद यों ही तने रहे
तब तक बीती ऋतु पावस की
आयी वो रात अमावस की
आभा दीपों की विखरती थी
दामिनि सी तू भी दिपती थी
हाथोँ मेँ तेरे थी फुलझड़ियाँ
चेहरे पर खुशियों की लड़ियाँ
थी विवश मेरी भी अंखड़ियाँ
ध्वनियों की जोड़ रहा कड़ियाँ
लोगों ने मुझे भी समझाया
बन पड़ा जो भी वह बतलाया
बोले तुम विचलित हो लक्ष्य छोड़
पर सोचा मैने है यही मोड़
अब मैँ बन सकता हूँ क्या कुछ भी
यदि बता सकती तो बता तू भी
तुम नित नवीन सी दिखती हो
चन्दा की कला सी लगती हो
पल-पल पहाड़ से बीत रहे
अब तू ही बता क्या और सहेँ
ये बीते क्षण कल तुझको याद रहे
दु:ख देँगे यदि होगी प्रसन्न
विधि का शायद कुछ यही चक्र
सुख मेँ कर देँगे तुझे खिन्न
मैँ घास नोचता बैठा था
कुछ अन्यमनस्क सा दिखता था
तब तक आयी तू बन चपला
सोचा बोलूँ पर रुँधा गला
तब तक विखेर दी लट तूने
आयी थी मेरा हिय छूने
दिखती थी यों कुछ धुली-धुली
अधराधर थे ज्यों कुंद-कली
होठों पर छायी लाली थी
ऋतु भी कुछ यों मतवाली थी
हो रहे तेरे थे सुर्ख होठ
उठता मन मेँ मेरे कचोट
मै अवश अचल बैठा ही रहा
तुमने भी कुछ भी नहीँ कहा
तब तक आयी माता तेरी
देखा तुझको गतिविधि मेरी
फिर लगी कोसने तुझको वे
देखा न गया सब मुझसे ये
नयनों से नीर टपकते थे
चेहरे के भाव झलकते थे
मैँ रहा सदा ही दृग् विपन्न
रख सका न तुझको मैँ प्रसन्न
फिर सोचा सब कुछ माया है
अब तक जो कुछ भी पाया है
बाँधूँ शब्दों मेँ मैँ उनको
कर सकूँ प्रकाशित मैँ जिसको
तब से लिखता हूँ मैँ प्रतिदिन
इक गीत सदा ही मैँ तुम पर
ढाल तुझे शब्दों मेँ मैँ
करता निज जीवन भास्वर
मैँ चित्रकार बनकर
खीँचूँ रेखा तुम पर
अंकित कर दूँ तुझको
धरती के दामन पर
मैँ शिल्पकार बनकर
निकलूँ छेनी लेकर
दूँ रूप तुम्हेँ ऐसा
दमको तुम दुनिया भर
मैँ पकड़ लेखनी को
ध्वनियोँ को लय दे दूँ
औ पकड़ तूलिका को
आ तुझमेँ रंग भर दूँ
तू दमक रही ऐसे
चमके जैसे सविता
उजले प्रकाश मेँ मैँ
रच दूँ तुम पर कविता
मैँने ही बनाया था
क्या से क्या तुझको
अब दमक रही जग में
तब भूल गयी मुझको
लेकर कुरान गीता
ढूढूँ तुममेँ मीता
आना ही होगा अब
तुझको बनकर शुचिता
मैँ इक किसान बनकर
ढूढूँ तुममेँ सीता
आ बीज वपन कर दूँ
हो जाओ तुम मुदिता
तुझे चिर प्रसन्न देखूँ
है मिलता सुख मुझको
मुख म्लान तेरा देखूँ
क्यूँ होता दु:ख मुझको
उद्देश्य लिए पावन
उतरे हैँ हम जग मेँ
झेलूँ उन सबको
आये जो भी मग मेँ
तट से स्थिर हैँ हम
बहती बिच जग सरिता
मिलते प्रतीत हों हम
तुम बन जाओ कविता
गिरिजेश"गिरि"
LOVE
get me happiness. Behold thy face sad why does affliction me?The sacred purpose we landed mostly in the world and suffer all the hurdles whichever come in our path. We are also stable like the coast of rivers which flows between them as the world. We may appear to meet if you become a verse of me.
Girijesh "Giri"
प्यार
जो दीप जलाया है तूने
उसका फैला है यों प्रकाश
मन मुकुर मेँ
प्रतिविम्बित मुखड़ा
होता है मुझको योँ आभास
आओ बैठो तुम पास मेरे
कर दूँ तेरा नूतन श्रृंगार
आभरण को न स्पर्श करूँ
ध्वनियों को दूँ मैँ महाकार
अनुरणित हो जो फिर इस जग मेँ
बरबस हो दुनिया करे पाठ
व्याकुल हो तुम भी करो याद
मैँ मौन खड़ा बनकर ज्योँ काठ
गिरिजेश"गिरि"
LOVE
Through this poem the poet wants to say about love between two lovers .he says to her lover that the lamp of love which you have lit in my heart is spreading so light that i can see your face in the mirror of the heart which i can feel only. Please come to me so close that i can ornate you in a new style different from the world. In that ornamentation i will not touch any ornament usual in the world but give a giant shape and seize of sounds which is lyricality of the poems whose resonence became eternal in the world and force to revoce the people which make you force to remember me and i would be standby from you becoming speechless like an inanimate.
It is clear that poetry is the spontaneous overflow of power full emotions. it is that feelings in which surroundings powerfull emotions are raised in the heart of a poet and he gives a shape them through words which spread in thd world as resonence by which poet always l
ives in his audience .
Girijesh"giri"
"what is love?"
what is love
is it a touch
or
sexual instinct
is it a feeling
or
any thing distinct
is it a thurst
or
tears which burst
is it a meditation
or wandering in hesation
is it a vision
or
things without reason
is it a passion
or
modern youth's faishion
is it a smile
or
youth's life style
i think
it is an
abstract link
girijesh''giri''
पूस का प्यार
पूस मास की धूप सुहावन
बिखरी रश्मि धरणि पर पावन
हरियाली चहुँ दिशि है बिखरी
धरती की है शोभा निखरी
पिक-शुक चहक रहे डाली पर
प्रियतम की अँखियाँ बाली पर
कुन्तल बिखरे गात पर ऐसे
घिरा हो घन बिच चंदा जैसे
खेतों मेँ हैँ मटर की फलियाँ
गुड़ से महके गाँव की गलियाँ
शबनम मोती से हैँ झिलमिल
बागों मेँ है खग कलरव हिलमिल
लाली प्रेयसि के होठों पर
बैठी चहक रही ओटों पर
प्रेयसि पाँढुर धूप सेँकती
कंकड़ को ले जल मेँ फेँकती
पानी मेँ होती है हलचल
हो जाती वह फिर क्यों विह्वल
माथे पर हो आभा रक्तिम
बीते दिवस का पहर है अंतिम
बढ़ती रातों की है ठिठुरन
माथे पर उसके है सिकुड़न
हर पल खोयी वह रहती है
जाने क्या-क्या वह सहती है
सोच रही कब होगा अंत
आयेगा कब मधुर बसंत
गिरिजेश"गिरि"
Love of the chill
Throuh this poem poet wants to say about the lovers condition in the chilled winter that it is pleasent warm in the month of poos where pios sun light is spreading over land and every where it looks like evergreen. Birds are screeching in the branches of trees and a young man is glaring the ear ring of his lover. The black hairs of her are covering her shoulder which looks like the moon is covered by the dark clouds. Green peas are in the fields and the streets of the village are scented by sugar cakes. Dews are sparkling over the
leaves in the sunlight like a pearl. Screeching of birds are amalgamated in the orchards. There is a chrimson on her lips and overwhelmed in cheers. She is taking heat from the warmless yellowish sun and throwing stones in the pond which raise waves in the stir water resulted her overhelming. There is a glory on her forehead. This is the last phase of day which is going to be end. As well as night is increasing the coldness is also increasing which shrinks her forehead. Shr is always lost in the love and suffers every thing which ever she feels and thinks when the days will come of sweet spring.
Girijesh"giri"
प्यार की प्रवृत्ति (THE TREND OF LOVE)
जब शाम आती है
तन्हाई लाती है
मैं गीत गाता हूँ
तुम मुस्कराती हो
फिर रात आती है
शीतलता लाती है
मैं गुन-गुनाता हूँ
तुम गीत गाती हो
जब चांदनी बिखरे
तेरा रूप यों निखरे
मैं पास बुलाता हूँ
तुम भाग जाती हो
जब प्रात आता है
तो खुशियाँ लाता है
मैं तुझे मनाता हूँ
तुम रूठ जाती हो
गिरिजेश''गिरि''
THE TREND OF LOVE
When evening comes, brings lonelyness. I sing a song and You smile. Then the night falls and induces coldness.I recite under my lips and you sing there.When the moonlight scattered, thy beauty enhanced I call thee but you ran away from there. When the morning comes,it brings happiness.I persuade thee but you become angry.
Girijesh''giri '
दिवा स्वप्न (NIGHTMARE)
जब भांड़ खनकते आंगन में
तब यूँ उठता है कुछ मन में
लगती है धुन यूँ मधुर-मधुर
बजती हो पायल जैसे उधर
मैं दिवा स्वप्न में खो जाता
खुद को वश में नहिं कर पाता
प्रस्फुटित होती जब किलकारी
मन में खिलती तब फुलवारी
मैं निस्सहाय हो जाता हूँ
बस सपनों में तुमको पाता हूँ
हर पल यूँ ही है बीत रहा
क्या कहूँ प्रिये नहीं जाये रहा
मैं महाकाव्य रच डालूँगा
तुमको कविता में पा लूँगा
हर शब्द होंगे मेरी धड़कन
परिलक्षित होगी मेरी तड़पन
गिरिजेश''गिरि''
NIGHTMARE
When the jack-pudding in the courtyard, then there is simply something in mind, which seems rather sweet-sweet tune such as rings, anklets to be there. I lost in nightmare. Not yet able to control myself. It would erupt when the shriek, the garden blooms in mind. I would be helpless and find thee just in the dreams.Having every moment whim. What should I tell you, dear, it is very difficult to survive. I'll touch epic and will find you in the poetry.Every word will be my heart beat which will be reflected in my jactitation
Girijesh''giri '
माधुर्य (LUSCIOUSNESS)
किसकी उपासना में रत हो
कुछ कहो आज क्यूँ धृत व्रत
हो
कच काया को है ढांप रहा
मानो तेरा कद नाप रहा
कच बीच अधखुले अंग तेरे
होती हिय में है जंग मेरे
कर बांध खड़ी बुत के समक्ष
है दूर खड़ा कोई विपक्ष
देवार्चन में तू लीन रही
मुड़कर देखा अति दीन रही
जब हुआ सामना मुझसे तो
रहा न गया फिर तुझसे तो
थी ताम्र लोटिका तेरे हाथ
रोली का टीका तेरे माथ
चेहरे पर थी इक अजब शांति
मानो मन में ना कोई भ्रान्ति
जलते कपूर की लौ सी तू
तिल-तिल जलती है मानो तू
यह उष्ण धूम्र तेरी है श्वांस
जो जगा रही मन में है आस
माधुर्य भक्ति का भाव तेरा
छीना सब कुछ जो भी था मेरा
मैं तड़प रहा जलाभाव मीन
तुम भी दिखती हो अती दीन
गिरिजेश''गिरि''
LUSCIOUSNESS
( pict. from google)
In this poem the poet wants to say about two lovers who
cannot express themselves but can think individually what ever they think about
each other. The poet transplant himself in one of them and says that you are
engaged in whose worship, tell me please that why are you so stern fast today.
Thy curls are so covering your body that they want to measure your height.
Seeing the seminude body among thy curls a battle is being started in my heart.
Thee standing infront of an idol by joining thy hands and me just opposit to
you so far. You were engaged in the worship of God and when returned and saw so
feeble you are. when you faced me then unable to controll thyself. There were a
copper pot in thy hands and a red mark on thy forehead. It was a strange peace
on thy face which shows no confusion was traced in thy mind. You were burning
slowly just like a flame of burning camphor whose white warm smoke looks like thy breathe which rises
a desire in my heart.It was thy lusciousness emotion which took off every
things what ever belongs to me. I was overwhelmed just like a fish without
water and thee looks so too.
girijesh''giri''
प्रेम की पाँखें
बुझे हुए बल्ब के
घिघिआये अँधेरे में
बोलती बंद है बाला की
दूर !
सड़क के उस पार
दिखता है उसे
मिटता हुआ प्रकाश
धुंधली सी अजनबी छाया
उसमें ही उसने कुछ पाया
घूरती हैं
उसकी दो आँखें
शायद निकल रही है
उसके भी प्रेम की पाँखें
गिरिजेश''गिरि''
FEATHERS OF LOVE
In the timid darkness due switched off bulb the girl was speechless. A far distant ! across the road he looks a dim light in which he sees a blurred image of a stranger in which he found something that glaring of two eyes.Maybe going out that her feathers of love is growing up.
Girijesh '' Giri ''
बेबश प्यार
गहरी नदिया बहता पानी
पार लगाऊं कैसे ? रानी
डोंगी, नौका की बात तू छोड़
नहीं , यहाँ इक डंडे का तोड़
इस तट पर मैं खड़ा सोचता
देख तुझे बस बाल नोचता
नदी का कल-कल अट्टहास है
सारी कोशिश अनायास है
लहरें ही हम गिन सकते हैं
बस सपने ही बुन सकते हैं
साहस नहीं कि, छलांग लगाऊं
सामाजिक भय दूर भगाऊं
जीवन यह दुःख से ही भरा है
तूने भी तो कायर को वरा है
गिरिजेश''गिरि''
Helpless love
Here is deep river in which water is running.. O' my love can you say how to cross it ? Neither a canoe nor a boat even a piece of cane is not available here for help. Standing on the coast being helpless I can think and watch only. Roars of the river is just a laughter challenge which teases us. All efforts are effortless , We can count the waves Just a dream, which we can weave .Can not dare to leap by removing the social phobia .Life is full of sadness and thee too has elected a caward as thy companion.
Girijesh '' Giri ''