लोकतंत्र की हलचल से उत्पन्न
राजनैतिक उद्वेलन के पश्चात्
उपजी नीरवता
जिसमें विलीन होते
विभिन्न रंग
जाति,धर्म आदि के ढहते किले
एक अजीब सी दहशत
जो विवश करती है
सोचने को
कि
कैसे बचाएं अस्तित्त्व ?
तरह-तरह के विचार उठते हैं
मन में
नए-नए तर्क
ढूंढे जाते हैं
क्योंकि अस्तित्त्व का सवाल है
लोकतंत्र का ठेका जो ले रखा है
जनता को जबाब जो देना है
शायद इन्हें नहीं मालूम
कि जनता ने ही उन्हें
जबाब दिया है
जिसे स्वीकारना
उनके वश में नहीं है
इसलिए मानसिक संतुलन खोना
लाजिमी ही है
चारों तरफ दिखता है
तो बस एक ही रंग
जो शोर मचा रहा है
और वे कानों में उंगली डाले
बस भाग रहे हैं
कि
शायद उन्हें भी
मिल जाये जमीन
जिसका रंग उनका हो,
नहीं तो जीवन
रंगहीन हो जायेगा
जो कि चेहरे पर
साफ़-साफ़
दिख रहा है
गिरिजेश''गिरि''
COLORS OF THE DEMOCRACY
Generated by the stirring of democracy after political uproar, a stomachlessness in which different colors are merging and fort of caste, creed etc are demolished. A strange panic which constrains to think that ''How to save existence?'' A variety of ideas arise in the mind. New logics are searched, because it is the question of existence. It seems that they have taken the contract of democracy. They have to give answer to the public but they dont know that the public have answered them whose acceptance is beyond of them, that is out of control for them. Therefore, they are losing their mental balance which is abnaturo. It looks all around just the same color, which is making noise and they are putting fingers in their ears and running and running to seek the even land of favourable color, otherwise their life would be colorless which is clearly visible on their faces.
Girijesh '' Giri ''
राजनैतिक उद्वेलन के पश्चात्
उपजी नीरवता
जिसमें विलीन होते
विभिन्न रंग
जाति,धर्म आदि के ढहते किले
एक अजीब सी दहशत
जो विवश करती है
सोचने को
कि
कैसे बचाएं अस्तित्त्व ?
तरह-तरह के विचार उठते हैं
मन में
नए-नए तर्क
ढूंढे जाते हैं
क्योंकि अस्तित्त्व का सवाल है
लोकतंत्र का ठेका जो ले रखा है
जनता को जबाब जो देना है
शायद इन्हें नहीं मालूम
कि जनता ने ही उन्हें
जबाब दिया है
जिसे स्वीकारना
उनके वश में नहीं है
इसलिए मानसिक संतुलन खोना
लाजिमी ही है
चारों तरफ दिखता है
तो बस एक ही रंग
जो शोर मचा रहा है
और वे कानों में उंगली डाले
बस भाग रहे हैं
कि
शायद उन्हें भी
मिल जाये जमीन
जिसका रंग उनका हो,
नहीं तो जीवन
रंगहीन हो जायेगा
जो कि चेहरे पर
साफ़-साफ़
दिख रहा है
गिरिजेश''गिरि''
COLORS OF THE DEMOCRACY
Generated by the stirring of democracy after political uproar, a stomachlessness in which different colors are merging and fort of caste, creed etc are demolished. A strange panic which constrains to think that ''How to save existence?'' A variety of ideas arise in the mind. New logics are searched, because it is the question of existence. It seems that they have taken the contract of democracy. They have to give answer to the public but they dont know that the public have answered them whose acceptance is beyond of them, that is out of control for them. Therefore, they are losing their mental balance which is abnaturo. It looks all around just the same color, which is making noise and they are putting fingers in their ears and running and running to seek the even land of favourable color, otherwise their life would be colorless which is clearly visible on their faces.
Girijesh '' Giri ''